मानवता की सीख जरूरी है ,

आज हम अच्छे खासे बटते जा रहे है, जातियों के नाम पर सस्थां तक चलती है, फिर अध्यक्ष, और हसी और आती है जब 
कोई कहता है फलाना समाज ढिमाका समाज, का कार्यक्रम 
मानवता की पहचान पहले हो, द्वितीय स्तर पर गुण, बहुत है किसी की पहचान के लिए और क्या चाहिए ? 

वर्ण व्यवस्था को अच्छा खासा समय दिया, अपने मूल अध्यन को थोड़ा छोड़ के, मैने सोचा पहले ढंग से समझ लिया जाय, 

वास्तव मे एक भी कमी नही एक भी भेदभाव नही बह कर्म की पहचान हेतु था, और अच्छा लचीलापन था कोई भी, कर्म करके उपर नीचे हो सकता था, पर आज के जड़ बुद्धि जैसे समय के साथ नही सोच पा रही वैसे ही यहाँ के लोग हो गए ,। 

में पंडित इसलिए लिखता हूँ क्योकि मैने निर्णय लिया की मानवता को दिशा शिक्षा के द्वारा यही कर्म (bhagwat gita मे श्री कृष्ण ने बताया) वही कर्म करते हुए मुझे दुनिया के विरुद्ध भी जाना पड़े तो न हटने बाला, सत्य से बड़ा कोई धर्म नही, ये लिखने मे भी रोचक है , 

आर्य युग मे शादी के लिए क्या चाहिए होता था? 

मानव हो और योग्य हो, (होमो सेपियेन्स, Eligible) 
ये वैदिक नियम है (जिसमे 8 प्रकार की शादी बताई गयी है) 
पर आज जाने कहा से 
जाति,का फैशन आ गया, गंघर्व् विवाह (love marrige )तो मानो पाप किया हो 
दहेज, तो ऐसे मांगते है जैसे .............. 

खैर इन सब का श्रेय किसे देना चाहेंगे, 
ये केवल उन जाहिलों को जो बस मुह को खाने और जहर उगलने मे है, जिनके मुह पर मुखौटा तो संत, मौलवी, फादर जैसे होते है , और राजनेता इनका योगदान इतना है आज भी देश मे sc, obc, st, gen के सर्टिफिकेट मिलते है, इन्हे 
नागरिक नही दिखते । 

पर मै बतां दूँ आज का युवा समझदार भी है अलग भाव जाता बाटने बाले भेड़ियों को, चाहे बह किसी भी सकल मे हों 
ये युग बड़ा ही प्यारा है यहाँ Internet ने अच्छी खासी जागरुकता फैलायी है,   

मे शांति से अपने upsc, UHO, और आगामी पुस्क्तको पर काम कर सकता था, पर समाज मे बड़ती नौटंकी मुझसे न देखी जा रही, एक एक विषय पे विचार कर समाधान किया है 

उस समाधान को एक पुस्तक रूप दिया है 

'I have vision of Great Bharat ' के रूप मे जल्द ही मानव समाज को उपहार करना चाहूंगा। 



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