UHO के बाद मेरे संपर्क मे जितने ORG थे सब पर्यावरण के लिए कार्य करने लगे थे । मुझे अच्छा लगा इस दिशा मे कार्य तो हुआ, पर जमीनी स्तर पर फ़र्ज़ी दिखे बुरा लगा ....... सरस्वती कृपा से विचारों का भंडार सा है, और जीव सेवा मे उसका प्रयोग मेरा प्रयास है मैं ही करू ऐसा जरूरी नही पर देखता हूँ, की बस छलावे के रूप मे विचारों का प्रयोग किया जाता है, शायद इसी लिए कहा जाता है, नक्कलो से सावधान। अब compny के idea तक copy होते है। नकल करने बाला अगर सच्चे मन का हो तो बुरा न लगे पर ........... इससे पहले शायरी की चोरी, और लेखों की चोरी की जाती थी। लोगो के अंदर जो चोर प्रवर्ती है सायद यही कारण है उनके आत्मिक विकास न होने का, अस्तेय मानसिक , वाचिक, कार्मिक तीनो रूप से हो तभी बह माना जाए । और मान लो कॉपी की भी है तो उसका आभार देने मे क्यों दुःख होता है। हम लेखकों की का हृदय बड़ा है, मानसिक संपति बनाते ही दुसरो की मदद के लिए पर इसका मतलब ये थोड़ी की मालिक को ही मिटा दिया जाए.......