वंश वृक्ष। अविनाश पाठक
भारत में बस 7 वंश चल रहे हैं जो 115 उपगोत्र में विभाजित हुए और अंग्रेजो ने जाति बाटी, वरना मानव जाति राष्ट्र धर्म के आलावा 4 वर्ण यानी (कर्म) ही है पूरी दुनिया में। बड़ा जरूरी है की हमे अपने, पूर्वजों के कर्म, पता हो ताकि हम उस कार्य को आगे ले जा सके हम सामवेद कुल के भार्गव वंश से है जिसमें, युद्ध कला के जनक परशुराम, असुर गुरु शुक्राचार्य आते हैं। शिक्षा, युद्धकला, आयुर्वेद, संगीत कार्य है । जीव हित के लिए जीते है। पंडित श्री रामचरण पाठक जी (कर्मयोगी) वनारस से आचार्य संस्कृत विद्वान, वागेस्वरी पीठमें तप दिया इनकी कहानियां गांव में सुनी जा सकती है, पढ़ने के शौकीन, और सरल परिधान पहनने वाले । इनके दो पुत्र १.पंडित श्री सतानंद पाठक (कर्मयोगी) BAMS , गांव का पहला असपताल, शिक्षा की शुरुआत इनकी पत्नी मेरी दादी, शांति देवी इंग्लिश MA, शिक्षक रही २.संत श्री प्रभुदयाल पाठक (वागेस्वरी भक्त ) बगलामुखी तंत्र, वागेस्वरी पीठ की में पुरे जीवन तप दिया समाज सेवा, अनुशासन के प्रतीक पंडित श्री सुनील पाठक (...